पर्यावरण संरक्षण पर गंभीरता से चिंतन जरूरी By Sarita Rai Yadav

  • by Sarita Rai Yadav
  • Wednesday, June 5, 2019 3:02 PM
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आज विश्व भर में पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है। आज हर व्यक्ति अपने पर्यावरण के संरक्षण को प्रतिबद्ध नजर आ रहा है। पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के लिए योजनाएं बनाई जा रही हैं। किस प्रकार हम पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं, इस पर चर्चाएं हो रही हैं। इन सभी चिंताओं व चिंतनों को देखते हुए मन में एक बार उठ रही है कि क्या हमें पर्यावरण की रक्षा व संरक्षण हेतु विचार बाकी दिनों नहीं आते। क्या हम इंतजार करते हैं कि कब पर्यावरण दिवस पड़े और हम इसके लिए गंभीरता से सोचें? आजकल तो यही चलन है।

यह बेहद दुःखद व चिंताजनक तथ्य है कि हम पर्यावरण की रक्षा हेतु चिंतन तो करते हैं, योजनाएं तो बनाते हैं परंतु इसके लिए कुछ कर पाने में हम अब भी सक्षम नहीं हैं। हमारे लिए यह असंभव इसलिए है क्योंकि हम अपने सुख-साधनों को एकत्रित करने में कुछ इस तरह व्यस्त हैं कि हमें अपनी धरती, अपने प्राकृतिक संसाधनों व हमारे अपने पर्यावरण के रक्षा के लिए सोचने का तो समय ही नहीं बचा। हां, हम पर्यावरण दिवस पर चर्चाएं कर लेते हैं कि ऐसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिए। परंतु गंभीरता किसी में नहीं दिखाई देती है।

ज्ञात हो कि इस बार पर्यावरण दिवस की थीम वायु प्रदूषण को बनाया गया है। ऐसा इसलिए किया गया है कि आज के समय में वायु प्रदूषण का स्तर बाकी के प्रदूषणों से काफी उच्च स्तर पर चला गया है। चिंता की बात है कि जिस वायु से हमारा जीवन चलता है वही जहरीला बनकर हमें हानि पहुंचा रहा है और इसके लिए हम ही जिम्मेदार हैं।

आज वायु प्रदूषण का संकट सबसे बड़ा संकट का रूप धारण कर चुका है। एक रिपोर्ट की मानें तो दुनिया की 91 प्रतिशत आबादी वायु प्रदूषण से प्रभावित है। स्पष्ट है कि धरती पर जीवन खतरे में हैं। अगर हम आंकड़ों पर गौर करें तो भारत के ज्यादातर शहर वायु प्रदूषण के शिकार हैं। यानि भविष्य में संभव है कि यह खतरा और बढ़े। ऐसा होने से पहले जरूरी है कि बड़े स्तर पर रणनीति तैयार की जाए। केवल चर्चाएं करने से या विचार विमर्श करने से समस्या का हल नहीं निकलने वाला। इसके लिए हमें जमीनी स्तर पर प्रयास करने होंगे। हमें यह जानना चाहिए कि भारत के ऐसे शहर जहां वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ा हुआ है, वहां ऐसा क्यों हो रहा है। इसके रोकथाम के लिए कड़े प्रयास करने होंगे। बता दें कि गुरूग्राम, गाजियाबाद, फरीदाबाद, नोएडा, काफी चिंताजनक है। कुछ ऐसा ही हाल दुनिया के बाकी बड़े शहरों का भी है।

दुनिया का कोई देश या कोई ऐसा शहर नहीं होगा जहां विकास की दौड़ नहीं लग रही हो। इस दौड़ में हम भूल गए कि हम क्या खोते जा रहे हैं। सुख सुविधा पाने की होड़ में हम पर्यावरण को ताक पर रखते हैं। और इसका नतीजा हमें ग्लोबल वार्मिंग के तौर पर नजर आ रहा है। धरती गर्म होती जा रही है। सर्दी हमें बर्दाश्त नहीं होती। बारिश लगातार कम होती जा रही है। पेड़ों को लगातार काटा जा रहा है और भी बहुत सारी ऐसी बातें हैं जो हमारे लिए क्षण भर की खुशी देती हैं और जीवनभर का गम देने में सक्षम हैं। वायु प्रदूषण के कारण सांस की बीमारियां, दिल के रोग, फेफड़े के कैंसर और त्वचा की विभिन्न बीमारियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। अस्थमा ने तो बच्चों का बचपन ही छीन लिया है।

विकास के चलते पर्यावरण और मानवीय जीवन का जो क्षय हो रहा है उसे अब हम षायद ही रोक सकेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि हम भोग विलासिता में इतने रम गए है कि हमारी प्रकृति ही हमें अब हमारे गुनाहों की सजा दे रही है। इसे हम अपने जीवन की विडंबना ही कहेंगे कि हमारे जीवन का आधार यानी जल और वायु अब दोनों ही प्रदूषित होकर हमें धीरे-धीरे मार रही है। इन संसाधनों का ऐसा हाल हमने ही किया है। हम लगातार प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं। पहले हमने शुद्ध जल को खो दिया। इसका विकल्प हमने बोतलों में बंद प्यूरीफाइयर वाटर को बना दिया। फिर अब हम खो रहे हैं प्राण वायु को जिसकी बदौलत हम आज खड़े हैं और जिसके बिना एक क्षण भी जी नहीं सकते। संभव है कि अब डिब्बों में बंद आक्सीजन भी बिकने लगे। कमला की बात है कि बीजिंग षहर में तो अब आक्सीजन बाक्स की ब्रिकी षुरू भी हो गई है। भारत में भी वो दिन दूर नहीं जब अब ऐसे नजारे देखेंगे।

अपनी आने वाली पीढ़ियों को यदि हम एक सुरक्षित कल देना चाहते हैं कि हमें यह सोचना ही होगा कि हमने हमारी प्रकृति को कैसे बदतर बना दिया है। गंभीरता से यह चिंतन करना ही होगा की इसका उपाय क्या है। कैसे हम पर्यावरण को उसके वास्तविक स्वरूप से वापस मिलवा सकें। यदि हमने ऐसा किया तभी हमारा मानव होना सार्थक हो सकेगा। अन्यथा हम तो वैसे भी विकास की होड़ में इंसानियत को भुला चुके हैं। चिंतन कीजिए तभी बदलाव संभव है।

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