पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३१७

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अध्यापक एडवर्ड हेनरी पामर / 313 मुझे सदा आश्चर्य और हर्ष होता रहा है। अब मुझे इस बात को प्रकट करने में बड़ी खुशी होती है कि वे हिन्दुस्तानी, फ़ारसी और अरबी भाषाओं के अच्छे पण्डित हो गये हैं और इन तीनों भाषाओं को बड़ी ही शुद्धता और सरलता-पूर्वक लिख और बोल सकते सैयद अब्दुल्ला, 29 जून 1866 लन्दन-यूनीवरसिटी कालेज के हिन्दुस्तानी भाषा के अध्यापक और पंजाब के बोर्ड आव एडमिनिस्ट्रेशन के भूतपूर्व अनुवादक और दुभाषिये [ 3 ] मैं खुशी से सेंट जान्स कालेज के एडवर्ड हेनरी पामर साहब की अरबी, फ़ारसी और हिन्दुस्तानी भाषा की योग्यता की तसदीक करता हूँ। मुझे इस बात तक के कहने में संकोच नहीं कि मुझे अपने जीवन भर में किसी ऐसे योग्प-निवासी से भेंट नहीं हुई जो भाषाओं का इतना विज्ञ हो जितने कि पामर साहब हैं। मीर औलाद अली, 27 जून 1866 ट्रिनिटी कालेज, डब्लिन के पूर्वी भाषाओ के अध्यापक नीचे एक पत्र उद्धृत किया जाता है, जिसे पामर की एक ग़ज़ल महित निजामुद्दौला बहादुर ने 'अवध-अख़बार' को भेजा था- साहबे मन मुरब्बी मुश्फिक़ी हमदा फ़ल्ने हिन्द अजीज़े दिलहाय अहले इगलैड सैयद अब्दुल्ला साहब बहादुर प्रोफ़ेसर ने मुक़ामे दिलकश लन्दन से अपने ख़त में यह कन्दे मुकर्रर-खत मै गजल फाजिल अजल्ल हकीम व जहांदीदा जहाँआशना वल्के फल इंगलिस्तान मिस्टर एडवर्ड पामर साहब बहादुर का मेरे पास इस गर्ज से भेजा है कि उनकी फ़ारसी ग़जल से मैं भी लुत्फ़ उठाऊँ और उनके हाथ का लिखा देवकर हवेदाय सवादे ख़त से चश्मे जाँ को मुनौवर करूँ और बादह वास्ते उन्नुल-अबसार अहले-हिन्द के बराय दर्ज अख़बार भेजें, ताकि अहले-हिन्द जानें कि माज़ परवग्दा विलायते दुर दस्त इंगलैंड के वित्तवा ऐसे लायक़ फायक़ तब्बाअ मेहनती अमीर गायक होते है कि घर बैठे उलूम शरकी में, जिसमे अक्सर अहले मगरिक तो आरी व आतिल हैं, वे कमाल ख दादाद हासिल करते है। सैयद माहब ने अपने ख़त में लिखा है कि ये साहब जवाँसाल जवाँबख्त उलूम-दान निहायते योरप के सिवा जैस उलूमे मशरिक़ में दस्तगाह रखते हैं वैसे ही उसकी खत व किताबत और तहरीर व तक़रीर में यदेतूला । और तुरफ़ा यह कि मरजूकिये तबा से शेर भी फ़रमाते हैं। चनांचे ग़ज़ले सादी पर एक ग़जल भेजी है कैसी लुत्फ-अंगेज़ बल्कि हैरत-अंगेज़ है । इस काबलियत के सिले में साहबे मौसूफ़ को पन्द्रह सौ महीना का एक आला ओहदा बम्बई में मिलता है मगर अभी तअम्मुल है । जहे बड़ते