पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३४४

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यहाँ भी वही (मादक वस्तु का सेवन ही) विभाव है और अधिक वर्ण बोलना-आदि अनुभाव हैं। पूर्वाध का प्राम्य-वचन और उत्तरार्ध मे स्त्री के हाथ को कमल की उपमा देने की जगह अपने हाथ को उसकी उपमा देना भी 'मद-ध्वनि' का ही पोषण करते हैं।

११-श्रम

अत्यन्त शारीरिक कार्य करने से उत्पन्न होनेवाला एवं निःश्वास, अँगड़ाई तथा निद्रा आदि का उत्पन्न करनेवाला जो एक प्रकार का खेद होता है, उसे 'श्रम' कहते हैं। जैसा कि कहा गया है-

अध्वव्यायामसेवायैर्विभावैरनुभावकैः।
गात्र-संवाहनैरास्य-सङ्कोचैरङ्ग-मोटनैः॥
निःश्वासैजृम्भितैर्मन्दः पादोत्क्षेपैः श्रमो मतः॥

अर्थात् मार्ग में चलना, व्यायाम करना और सेवा आदि विभावों से और शरीर दबवाना, मुँह सिकुड़ जाना, अँगड़ाइयाँ, निःश्वास, उबासियां और धीरे-धीरे पैर पछाड़ना-इन अनुभावों से श्रम समझा जाता है। अथवा यह कि-

श्रमः खेदोऽध्वगत्यादेर्निद्राश्वासादिकृन्मतः।

अर्थात् मार्ग में चलने-आदि से जो खेद होता है, उसे 'श्रम' कहते हैं और वह निद्रा, निःश्वास आदि उत्पन्न करता है।