चाणक्य के इस श्लोक में बताया है कि जीवन में वह तीन समय ऐसे होते हैं जब उनकी बुद्धि शुद्धि और छल-कपट से रहित होती है। अगर हमेशा मनुष्य की बुद्धि वैसी रहे तो भला मुक्ति कैसे नहीं मिलेगी। आइए जानें वो तीन समय कौन-कौन से हैं जब बुद्धि पूरी तरह शुद्ध होती है।
दुष्ट लोगों पर चाणक्य की यह बात सटीक बैठती है, आजमाकर देख सकते हैं
आचार्य चाणक्य का कहना है कि व्यक्ति जब किसी प्रकार के धार्मिक उपदेश सुन रहा होता है। धार्मिक कार्यों को कर रहा होता है तब उसकी बुद्धि छल-कपट से रहित होती है। इसलिए कहते हैं कि मनुष्य को सत्संग करना चाहिए ताकि पाप विचारों से मन कुछ समय दूर रहे और मन पर जमा मैल साफ होता जाए।
व्यक्ति जब किसी करीबी को अंतिम विदा देने के लिए जब श्मशान में पहुंचता है उस वक्त उसका दिमाग बड़ी तेजी से चलता है। मन में बार-बार यह सवाल उठता रहता है कि सांसारिक कर्मों और लोभ, छल-कपट से क्या लाभ है अंत में तो यही गति होनी है। इन विचारों के कारण मन में वैर भाव नहीं रहता और मन में कोई गलत विचार नहीं आता है।
सुनने में भले ही यह थोड़ा अजीब जरूर लग सकता है लेकिन आचार्य चाणक्य का मानना है कि व्यक्ति जब रोगी होता है तब उसकी बुद्धि शुद्ध होती है। मनुष्य अपने कमजोर हो रहे शरीर को देखकर सोचता है कि क्या इस देह और देह से जुड़े नातों के लिए ही वह गलत कर्म कर रहा है। उस समय यह भी विचार बार-बार आता है कि अब रोग मुक्त हो गया तो किसी का अहित नहीं करुंगा।