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चाणक्य नीतिः इन 3 स्थानों पर लोगों की बुद्धि होती है उत्तम, नहीं आते बुरे ख्याल

Authored byगीतिका दुबे | नवभारतटाइम्स.कॉम 30 Apr 2022, 6:46 pm

विष्णुगुप्त जिन्हें दुनिया चाणक्य के नाम से जानती है वह ना केवल अपने जमाने के महान विद्वान और दार्शनिक थे बल्कि आज भी इनकी विद्वता को नीतियों को दुनिया नमन करती है। इनकी नीतियों और दर्शन का लाभ मनुष्य जीवन के हर क्षेत्र पर प्राप्त कर सकता है। लौकिक जीवन से लेकर अलौकिक जीवन के बारे में जो इनका ज्ञान था उनका जरा भी ध्यान कर लिया जाए तो इस धरती पर जब तक जीवित रहेंगे सुख से रहेंगे और मृत्यु के बाद स्वर्ग का आनंद प्राप्त करेंगे। चाणक्य की नीतियों का एक अंश यहां आपके लिए प्रस्तुत है जिन्हें याद रखेंगे तो मन में कभी बुरे विचार नहीं आएंगे और मृत्यु के बाद स्वर्ग मिलना तय हो जाएगा।

  • चाणक्‍य का श्‍लोक

    चाणक्‍य का श्‍लोक

    चाणक्‍य के इस श्‍लोक में बताया है कि जीवन में वह तीन समय ऐसे होते हैं जब उनकी बुद्धि शुद्धि और छल-कपट से रहित होती है। अगर हमेशा मनुष्य की बुद्धि वैसी रहे तो भला मुक्ति कैसे नहीं मिलेगी। आइए जानें वो तीन समय कौन-कौन से हैं जब बुद्धि पूरी तरह शुद्ध होती है।

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  • इस समय मनुष्य की बुद्धि उत्तम रहती है

    इस समय मनुष्य की बुद्धि उत्तम रहती है

    आचार्य चाणक्‍य का कहना है कि व्‍यक्ति जब किसी प्रकार के धार्मिक उपदेश सुन रहा होता है। धार्मिक कार्यों को कर रहा होता है तब उसकी बुद्धि छल-कपट से रहित होती है। इसलिए कहते हैं कि मनुष्य को सत्संग करना चाहिए ताकि पाप विचारों से मन कुछ समय दूर रहे और मन पर जमा मैल साफ होता जाए।

  • श्‍मशान में होता है ऐसा

    श्‍मशान में होता है ऐसा

    व्‍यक्ति जब किसी करीबी को अंतिम विदा देने के लिए जब श्‍मशान में पहुंचता है उस वक्‍त उसका दिमाग बड़ी तेजी से चलता है। मन में बार-बार यह सवाल उठता रहता है कि सांसारिक कर्मों और लोभ, छल-कपट से क्या लाभ है अंत में तो यही गति होनी है। इन विचारों के कारण मन में वैर भाव नहीं रहता और मन में कोई गलत विचार नहीं आता है।

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  • रोग से पीड़ित होने पर आते हैं ऐसे विचार

    रोग से पीड़ित होने पर आते हैं ऐसे विचार

    सुनने में भले ही यह थोड़ा अजीब जरूर लग सकता है लेकिन आचार्य चाणक्‍य का मानना है कि व्‍यक्ति जब रोगी होता है तब उसकी बुद्धि शुद्ध होती है। मनुष्य अपने कमजोर हो रहे शरीर को देखकर सोचता है कि क्या इस देह और देह से जुड़े नातों के लिए ही वह गलत कर्म कर रहा है। उस समय यह भी विचार बार-बार आता है कि अब रोग मुक्त हो गया तो किसी का अहित नहीं करुंगा।