निःशब्द हों गए ये किनारे निःश्वास हों गया है ये अम्बर अब तो रुक जाना यह सब समझकर कि प्रकृति सबकुछ देती ही है नहीं कुछ लेती जीवन में मत घोल तु स्वयं तेरे ही श्वासो में जहर। अब तक तो देख भी लिया है जगत में कहर। Bhishma