Maittri mehrotra

Inspirational Others

4.3  

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पारितोषिक

पारितोषिक

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आज दादी बड़ी खुश लग रही थी घर में काफी तो नहीं पर हां चहल-पहल जरूर थी और हो भी क्यों ना। आज उनकी पोती को देखने लड़के वाले जो आ रहे थे। बड़ी नाजो से पली - बढ़ी थी उनकी पोती। दादी तो जैसे न्यौंछावर ही हुई जाती थी उस पर, उसके रूप पर। सब कुछ अद्भुत लगता था उनको कभी बालों को सहलातीं ,कभी नजर उतारतीं, कभी माथा चूम कर ढेरों आशीर्वाद देती। यह आज का ही नहीं वरन रोज की दिनचर्या का हिस्सा था उनका। जबसे सुवर्णा हॉस्टल से आई थी ,दादी उसको कभी अपनी नजरों से ओझल नहीं होने देती थी। उसकी मम्मी को भी तरह-तरह की हिदायत देती अरे, बहू जरा शुभी के लिए यह बना दे ... जरा कॉफी बना दे, थक गई होगी कब से काम कर रही है ।शुभी कहती अरे दादी! कुछ नहीं चाहिए। माँ आप परेशान मत हो। शुभी का ट्रेनिंग पीरियड खत्म हो गया था। अब तो वह डाॅ०शुभी हो गई थी ।एक बड़े नामी अस्पताल में उसकी नियुक्ति भी हो गई थी।

        हालांकि अभी शादी का कोई विचार नहीं था पर दादी ने अपनी शुभी के लिए डॉक्टर लड़का ढूंढा ही लिया था तो शुभी ने भी मां पापा जी के पूछने पर अपनी स्वीकृति दे दी थी। डाॅक्टर अनिल दादी व मां पापा जी को बहुत पसंद आ गए और डॉक्टर अनिल ने भी सुवर्णा को अपना जीवनसाथी बनाना स्वीकार कर लिया।

        शादी होकर ससुराल आ गई सुवर्णा। दो दिन मेहमानों के साथ और रस्मों को पूरा करने में कैसे निकल गए पता ही नहीं चला। 10 दिन का हनीमून डॉक्टर अनिल के साथ , लगा जैसे समय पंख लगा कर उड़ रहा है। एक-एक पल सहेज लिया था स्मृति में उसने। उन पलों की सुखद स्मृति उसके मुख मंडल को रक्तिम आभा से दीपित कर देती और यकायक चंचल मुस्कान चेहरे पर अधिकार कर लेती। विचारों में खोई गुनगुनाती हुई वह अटैची खाली कर कपड़े अलमारी में लगाने लगी। उसे कल से हॉस्पिटल जाना था उसकी भी तैयारी करनी थी तभी डॉक्टर अनिल अंदर आ गए ,उसे बांहों में भरते हुए बोले ,"अरे कल मैं तुमको ड्रॉप करके निकल जाऊंगा। अभी बाहर चलो , माँ खाना खाने के लिए बुला रही हैं।" अनिल की आँखों में शरारत देख स्वयं को छुड़ाते हुए वह मुस्कुरा दी। स्त्री सुलभ लज्जा से सहज ही उसकी आँखें झुक गयीं।

        खाना खाकर वह कमरे में चली गई तीसरे दिन बुआ जी की आवाज उसके कानों में पड़ी वह कह रही थी," महारानी जी से पूछो ,घर का काम-वाम भी आता है या नहीं? या घर का काम करने वाले नौकर मायके से आएंगे।"शुभी अवाक खड़ी रह गई ।पैर दरवाजे के पास ही जम गए। किसी तरह जाकर धम्म से बिस्तर पर बैठ गई। आंखों से आंसुओं की धार बह चली। अनिल बाहर बैठक में पापा जी से बातें कर रहे थे। अंदर आने पर शुभी को तकिए के ऊपर उल्टा लेटा देखकर पूछा ,"क्या हुआ शुभी ?" अपने आप को शांत व संयत करते हुए शुभी ने उत्तर दिया,"आज हस्पताल में बहुत काम था ।कोविड-19 के पेशेंट्स की संख्या रोज बढ़ती जा रही है। थकान की वजह से सर दर्द हो रहा है।" अच्छा तुम आराम से लेटो और सो जाओ कहते हुए अनिल ने शुभी को चादर ओढ़ा दी और माथे को हल्के से सहलाते हुए पूछा," क्या बाम लगा दूं?"

        अब तो यह रोज का ही हाल हो गया था बुआ जी ताना मारने का कोई भी मौका नहीं छोड़ती थीं। मां और अनिल भी सुनकर चुप कर जाते थे। उधर अस्पताल में दिन-प्रतिदिन कोविड-19 के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही थी। टेस्टिंग के लिए जगह-जगह कैंप में भी जाना पड़ रहा था। कभी-कभी तो दो-तीन दिन अस्पताल में भी रुकना पड़ रहा था। अनिल का भी यही हाल था।

        आज 2 दिन बाद शुभी अस्पताल से घर आई थी। सीधे जाकर नहा धोकर बाहर आई ,चाय पी रही थी तो माँ ने बताया बुआ जी के बुखार है। अनिल भी अस्पताल से नहीं आया है। शुभी ने देखा तो बुखार तेज था हल्की सांस भी फूलती सी लगी। शुभी के चेहरे के भाव बदल गए उसने तुरंत अनिल को फोन किया, और बुआ जी का हाल बताया। अनिल ने शुभी से कुछ कहा फिर मां से बात की। शुभी ने फोन कर अपने अस्पताल से एंबुलेंस बुलाई और मां, पापा जी और बुआ जी को ले जाकर कोरोना का टेस्ट करवाया। बुआ जी की रिपोर्ट पॉजिटिव थी। बुआ जी को अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया। शुभी दिन-रात बुआ जी की सेवा में लग गई। अस्पताल में कोई भी प्राइवेट रूम नहीं मिला था। वार्ड में 20 मरीज थे। शुभी सभी मरीजों की देखभाल बड़े समर्पण के साथ कर रही थी। यह सब देख बुआ जी का हृदय द्रवित हो रहा था मन मंथन चल रहा था अपने मारे ताने ने उन्हें स्वयं लज्जित कर रहे थे। अचानक शुभी से उनकी नजरें मिली, और उसकी निश्चल ममतामई मुस्कान से उनकी बेचैनी और बढ़ गई। तभी सीनियर डॉक्टर अश्वनी जी आ गए वहां की व्यवस्था और मरीजों से बात करने के बाद उन्होंने डॉक्टर सुवर्णा की बहुत तारीफ की। बुआ जी को अस्पताल में 10 दिन हो गए थे सुवर्णा भी घर नहीं गई थी। बुआ जी की दूसरी रिपोर्ट सही आ गई थी। डॉक्टर सुवर्णा का नाम जुझारू और कर्मठ डॉक्टर के रूप में पारितोषिक के लिए चयनित किया गया।

        बुआ जी घर आ गई थी उन्होंने सुवर्णा को गले से लगा कर कहा, "बेटा, जो काम तुम कर सकती हो वह कोई नहीं कर सकता और जो नहीं कर पाती हो उसके लिए तो बाई है न " उन की इस बात पर सभी हंस पड़े आज सुवर्णा को एक नहीं दो-दो पारितोषिक मिल गए थे।

         

        


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