#धर्मसंसद मे रहकर मैने सीखा है कि ज्ञान-सूत्रों को भाव-सूत्रों से जोड़ कैसे ऋषियों के गहन मंतव्यों को समझने का दुष्कर प्रयास किया जाये।दुष्कर इसलिये कि गहन चिन्तन मनन के लिये वह शान्त परिवेश प्रकृति और मन आज उपलब्ध नही है।कभी विचार चलते हैं तो टीवी यूट्यूब फेसबुक जैसे कई आकर्षण
मन भटका देते हैं पर कल कुछ अद्भुत हुआ जिसे यदि आप सबसे साझा न करूं तो कृतघ्नता ही होगी।कल अष्टावक्र गीता का प्रसंग था।कहते हैं वे शारीरिक रूप से अष्टांग वक्र थे।अष्टावक्र-गीता मुझे प्रिय है।पर भगवद्गीता और श्रीमद्भागवत मे एक समान वैचारिक भाव-तद्रूप का तारतम्य की शाश्वत अन्तर्धारा
मिलती है।श्रीकृष्ण पूर्ण परात्पर ब्रह्म!जी!श्रीकृष्ण अवतार नही है अव्यक्त निरंजन सच्चिदानंद यदि नयनगोचर होगा अपने पूर्णत्व मे तो वह केवल और केवल श्रीकृष्ण रूप होगा।श्रीकृष्ण त्रिगुणात्मिका प्रकृति के स्वामी!फिर भी असम्पृक्त!असंश्लिष्ट!त्रिभंगीलाल!और त्रिगुणमयी परमाप्रकृति!आद्या!
पूर्णा!आराध्या!जब पूर्ण निरंजन ब्रह्म और पूर्णाआनन्दमयी श्रीराधा एक दूसरे के समीप आते हैं तो यह पूर्ण से पूर्ण का समगाहन है।त्रिभंगी लाल और नवल किशोरी!अद्भुत सम्मिलन!
"पूर्णमदः पूर्णमिदम पूर्णात् पूर्णमुदच्यते!
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते!"दोनो कभी नदी सागर संयोग से नही
मिले!मिल भी नही सकते थे!पूर्णता अद्वैत अनुभवगम्य होती है।दो होते ही नही!कुब्जा से लेकर अष्ट पटरानिया और सोलह हजार एक सौ रानिया श्रीकृष्ण की शौर्य यश सौंदर्य आदि की उपलब्धियां थी!श्रीकृष्ण आश्रिता थीं।पर ब्रज गोपिया ब्रजेश्वरी तो श्रीकृष्ण की पूर्णता थी।उनके कृष्ण कभी ब्रज छोड़ एक
पग भी बाहर गये ही नही।हर गोपी के अपने कृष्ण!हर एक की अपनी कहानी!तभी तो गोपियां कभी मथुरा ही नही गयी उल्टे श्रीकृष्ण को ऊधव को संदेश दे भेजना पड़ा!और ऊधव जब लौटे तो लटपट चाल!अटपटबोली!गदगद कंठ!नेत्रों मे अविरल यमुना प्रवाह!श्रीकृष्ण से इतना ही कहा कि "कान्हा तुम मथुरा क्यों आगये!"
पूर्णब्रह्म श्रीकृष्ण भी उस महाभाव के अनुभव को लेने आखिर निमाई बन आ ही गये।महाप्रकृति का महाभाव श्रीकृष्ण मे पूर्ण हुआ और श्रीकृष्ण का महाभाव गोपीजनवल्लभ मे पूर्ण हुआ।त्रिगुणातीत होने से श्रीकृष्ण त्रिभंगी लाल हैं वैसे ही अष्टधा प्रकृतिसे निरबंध ब्रह्मज्ञानी होने से अष्टावक्र कहे
गये!वह शारीरिक उपाधि नही उनका निर्मल ब्रह्मज्ञान था जो प्रकृति के अष्टविकारों से शुद्ध बुध्द मुक्त आनंद था।जय श्रीकृष्ण!जय अष्टावक्र!

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Mar 2
राम शब्द का अर्थ है.....
रमंति इति रामः
जो रोम-रोम में रहता है, जो समूचे ब्रह्मांड में रमण करता है!वह "राम" आखिर क्या हैं ...?????
राम जीवन का मंत्र है!
राम मृत्यु का मंत्र नहीं है ।
राम गति का नाम है!राम थमने!ठहरने का नाम नहीं है।"सतत गतिवान राम सृष्टि की निरंतरता का नाम है " Image
श्री राम!महाकाल के अधिष्ठाता,संहारक,महामृत्युंजयी शिवजी के आराध्य हैं!शिवजी काशी में मरते व्यक्ति को (मृत व्यक्ति को नहीं) राम नाम सुनाकर भवसागर से तारदेते हैं!राम एक छोटासा प्यारा शब्दहै..!!
यह महामंत्र"शब्द ठहराव व बिखराव,
भ्रम और भटकाव मद मोहके समापन का नामहै!कल्याणकारी शिव के Image
के हृदयाकाश में सदा विराजित राम भारतीय लोक जीवन के कण-कण में रमे हैं!राम हमारी आस्थाऔरअस्मिता के सर्वोत्तम प्रतीकहैं!भगवान विष्णुके अंशावतार मर्यादापुरुषोत्तम राम हिंदुओं केआराध्य ईशहैं!राम भारतीय लोकजीवनमें सर्वत्र!सर्वदा प्रवाहमान महाऊर्जा कानामहै!वास्तवमें रामअनादि ब्रह्मही है Image
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Mar 1
इतिहास की पुनरावृत्ति वही होती है जहां के लोग अपना इतिहास भूल जाते हैं ।1980 के दशक में अकाली दल के प्रभाव को कम करने के लिए केंद्र की तत्कालीन सरकार ने जनरैल सिंह भिंडरावाले को आश्रय देना शुरू किया था । उस समय पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित खालिस्तान आंदोलन( पृथक राष्ट्र) की मांग
पंजाब में चल रही थी । भिंडरावाले ने इस आंदोलन को हिंसा का रूप प्रदान किया और देखते-देखते पूरा पंजाब उग्रवाद की चपेट में आ गया। जब पंजाब में उग्रवाद चरम पर था, तब मार्च 1984 में बीएचयू छात्र संघ की अगुवाई में वाराणसी से अमृतसर तक का शांति मार्च आयोजित किया गया जिसमें अकाली दल के
अध्यक्ष स्वर्गीय हरचंद सिंह लोंगोवाल से पंजाब की समस्या के समाधान के बारे में विस्तार से चर्चा हुई उसके बाद आतंकवाद के पर्याय जनरैल सिंह भिंडरावाले से अपनी जान को जोखिम में डालकर राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया गया।
जो गलती उस समय हुई थी। उसी प्रकार की गलती की
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Feb 28
हनुमानञ्जनीसूनुर्वायुपुत्रोमहाबल:
रामेष्ट:फाल्गुनसख:पिङ्गाक्षोऽमितविक्रमउदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:
लक्ष्मणप्राणदाताच दशग्रीवस्यदर्पहा
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन: Image
स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्!तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भेवत्!
पहला नाम१.हनुमान है,२.दूसरा अंजनीसूनु,३.तीसरा वायुपुत्र,४.चौथा महाबल,५.पांचवां रामेष्ट यानी श्रीराम के प्रिय,६.छठा फाल्गुनसख यानी अर्जुन के मित्र,७.सातवां पिंगाक्ष भूरेनेत्रवाले,८.आठवांअमितविक्रम Image
९नवां उदधिक्रमणसमुद्र का अतिक्रमण करनेवाले,१०.दसवां सीताशोकविनाशन सीताजी के शोकका नाशकरनेवाले,११.ग्याहरवां लक्ष्मणप्राणदाता लक्ष्मण को संजीवनीबूटी द्वारा जीवित करनेवाले१२.बाहरवां नामहै दशग्रीवदर्पहा रावण केघमंड कोदूर करनेवाले।इनबारह नामोंको सोनेके समय,सुबह जगनेपर!यात्राकेमय जो Image
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Feb 27
@Sabhapa30724463 @Govindmisr @Radhika_chhoti @Ajay70152538 @amarlal71 @AnnapurnaUpad13 @AYUSHSARATHE3 @BablieVG @babulaltailoro @candrik111 @SimpleDimple05 @Prerak_Agrawal1 @SathyavathiGuj1 @DamaniN1963 @NandiniDurgesh5 महर्षि गर्गाचार्य ऋग्वेद के छठे मण्डल के 47वें सूक्त के मंत्रद्रष्टा थे।ये देवगुरु वृहस्पति के प्रपौत्र और भरद्वाज के पौत्र और भुवमन्यु ऋषि के पुत्र थे।ये ज्योतिष विज्ञान के बहुतबड़े वैज्ञानिक थे।ये महान शिवभक्तथे।महाकाल की कृपा से ये काल-विज्ञान(Time Space)के बहुत बड़े हस्ताक्षर
@Sabhapa30724463 @Govindmisr @Radhika_chhoti @Ajay70152538 @amarlal71 @AnnapurnaUpad13 @AYUSHSARATHE3 @BablieVG @babulaltailoro @candrik111 @SimpleDimple05 @Prerak_Agrawal1 @SathyavathiGuj1 @DamaniN1963 @NandiniDurgesh5 थे।ये महान गणितज्ञ और ज्योतिष विज्ञान के बड़े आचार्य थे।अखिल ब्रह्माण्ड से लेकर पिण्ड पर्यन्त ज्योतिष महाविज्ञान का क्षेत्र हैं!ज्योतिष और गणित का अन्योन्याश्रित सम्बंध है।आज भी विज्ञान की समस्त उपलब्धियां खोज गणित और इस ज्योतिषविज्ञान मे समाई हुई हैं।आज नासाजो अन्तरिक्षीय गणनाये
@Sabhapa30724463 @Govindmisr @Radhika_chhoti @Ajay70152538 @amarlal71 @AnnapurnaUpad13 @AYUSHSARATHE3 @BablieVG @babulaltailoro @candrik111 @SimpleDimple05 @Prerak_Agrawal1 @SathyavathiGuj1 @DamaniN1963 @NandiniDurgesh5 विज्ञान की आधुनिक उपलब्धि के रूप मे प्रस्तुत करता है वह हमारे वैदिक ऋषियों ने अपने शोध समाधि चिन्तन सूक्ष्म विश्लेषण और दिव्य तपोबल से पहले ही प्राप्त कर लिया था।ज्योतिष शास्त्र के प्रवर्तकथे गर्गाचार्य!ज्योतिष शास्त्रके18 प्रवर्तको ब्रह्मा गर्ग पराशर कश्यप सूर्य मरीचि मनु वशिष्ठ
Read 10 tweets
Feb 26
@Sabhapa30724463 @akhilmishra913 @Govindmisr @Radhika_chhoti @ALOKPATWARI @AnnapurnaUpad13 @AYUSHSARATHE3 @BablieVG @babulaltailoro @bageshwardham @Prerak_Agrawal1 @DamaniN1963 @NandiniDurgesh5 @MukulWatsayan @amarlal71 योग-दर्शन के प्रणेता महर्षि पतंजलि माने जाते हैं!पतञ्जलि योगसूत्रों पर दो प्रकार की टीकायें लिखी गयी हैं1व्याख्या प्रधान2.वृत्ति प्रधान!योगसूत्र पर सबसे पाण्डित्यपूर्ण और प्रथम भाष्य'व्यास-भाष्य'है।महर्षि पतञ्जलि के अति संक्षिप्त सूत्रों मे छिपी हुयी उनकी व्यापक दृष्टिको परख पाने
@Sabhapa30724463 @akhilmishra913 @Govindmisr @Radhika_chhoti @ALOKPATWARI @AnnapurnaUpad13 @AYUSHSARATHE3 @BablieVG @babulaltailoro @bageshwardham @Prerak_Agrawal1 @DamaniN1963 @NandiniDurgesh5 @MukulWatsayan @amarlal71 का वैदुष्य आचार्य व्यासदेव मे ही था।इन विद्वान पारखी को योगशास्त्र का प्रमुख व्याख्याता का सम्मान मिलना ही चाहिये।महर्षि पतञ्जलि ने योग की परिभाषा देते हुये कहा है "योगश्चित्तवृत्ति निरोधः"योग का अर्थ है जुड़ना।हम जुड़ते उससे हैं जिससे अलग होते हैं।योग चित्तवृत्ति के निरोध की बात
@Sabhapa30724463 @akhilmishra913 @Govindmisr @Radhika_chhoti @ALOKPATWARI @AnnapurnaUpad13 @AYUSHSARATHE3 @BablieVG @babulaltailoro @bageshwardham @Prerak_Agrawal1 @DamaniN1963 @NandiniDurgesh5 @MukulWatsayan @amarlal71 करता है!यह चित्त क्या है यह जानना आवश्यक है।मन की प्रधान शक्ति है चित्त!यह चित्त त्रिगुणात्मिका है क्योंकि इसकी कारणभूत प्रकृति ही त्रिगुणात्मक है सत रज तम के गुणों से आवृत्त है।जब'चित्त' विषयाकार हो जाताहै तब उस परिणाम को वृत्ति कहते हैं!चित्त एकमहासागरहै जिसमे वृत्तिरुपी उद्दाम
Read 20 tweets
Feb 26
मारीच को मारकर जब राम लक्ष्मणजी वापसआये तो देखाआश्रम में सीताजी नहींहै,तब भगवान सीताजी को वनमें खोजने लगे,विलाप करने लगे!जीवनसे जब भक्ति,शुद्धि,शान्ति,चली जातीहै तो हाय-हाय करना पडताहै!भगवान कोभी करनीपड़ी हमारी क्या विसातहै!
"हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी ,तुम्ह देखी सीता मृगनैनी!
खंजन सुक कपोत मृग मीना, मधुप निकर कोकिला प्रबीना"
हे पक्षियों!हे पशुओ!हेभौरों!कीपंक्तियों तुमने कही मृगनयनी सीताको देखा है?जब इसतरह भगवान सीताजी खोजते खोजते रोनेलगे!इसपर लक्ष्मणजी ने पूंछा-प्रभु!क्यों रो रहे हैं?भगवान बोले - लक्ष्मण!मैअपनी दुर्दशापर रोरहा हूँ! जब भगवानके हाथमें
शबाण देखकर हिरन भागने लगे,हिरणी बोली क्यों भाग रहे हो ?
"मोहि देखि मृग निकर पराहीं!मृगीं कहहिं तुम्हकहँ भय नाही!!तुम्ह आनंद करहु मृग जाए।कंचन मृग खोजन ए आए!"भगवान कोदेखकर जब डरकेमारे हिरनोंके झुंड भागने लगतेहैं, तब हिरनियाँ उनसे कहतीहैं-तुमको भय नहीं है!तुमतो साधारण हिरनहो!अतः
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