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Naresh Saxena Poetry: दिन भर की अलसाई बाहों का मौन बाहों में भर-भर कर तोड़ेगा कौन

कविता
                
                                                         
                            दिन भर की अलसाई बाहों का मौन,
                                                                 
                            
बाहों में भर-भर कर तोड़ेगा कौन,
बेला जब भली लगेगी।

आज चली पुरवा, कल डूबेंगे ताल,
द्वारे पर सहजन की फूलेगी डाल,
ऊँची हर डाल को झुकाएगा कौन
चौथे दिन फली लगेगी।

दिन-दिन भर अनदेखा, अनबोली रात
आँखों की सूने से बरजोरी बात,
साँझ ढले साँकल खनकाएगा कौन,
कितनी बेकली लगेगी।
एक वर्ष पहले

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