क्रोध का निमित्त बाहर, लेकिन मुल कारण भीतर हैं

11 Apr 2020 11:07:04
 
 
 
तुम जब कभी-कभी क्रुद्ध होते हो तो यह मत सोचना कि क्रोध का कारण मौजूद हो गया, इसलिए क्रुद्ध हो गए्. क्रोध तो तुम्हारे भीतर मौजूद ही था. बारूद तो भीतर तैयार ही थी. बाहर तो निमित्त मिल गया, एक बहाना, एक जरा सी चिनगारी, कि विस्फोट हो गया.
 
बुद्ध ने कहा है: सूखे कुएं में बांधो बाल्टी रस्सी में और डालो. खडखडाओ खूब, खींचो, पानी भरकर नहीं आएगा. भरे कुएं में बाल्टी डालो, ज्यादा खडखडाने का सवा ही नहीं है, तुम्हारे डालते ही बाल्टी भर जाती है. qखचो, जल से भरी आ जाएगी. क्या तुम सोचते हो बाल्टी डालने के पहले कुएं में पानी न था? पानी न होता तो बाल्टी में आता ही कैसे? पानी तो भरा ही था, इसलिए बाल्टी में आ गया.
 
किसी ने तुम्हें गाली दी-गाली यानी बाल्टी डाली तुम्हारे भीतर, खडखडाई- तुम्हारे भीतर क्रोध हो ही न तो बाल्टी खाली लौट आएगी. तुम्हारे भीतर क्रोध भरा हो तो बाल्टी भरी लौट आएगी. गालियां बाल्टियां हैं.. परिस्थितियां बाल्टियां हैं.्. मनः स्थिति तुम्हारे भीतर जैसी है, वही भरकर आ जाएगा. वही बाल्टी किसी गंदे नाले में डालोगे तो गंदा जल आएगा और किसी स्वच्छ सरोवर मग डालोगे तो स्वच्छ जल आएगा. बुद्ध में वही बाल्टी डालोगे तो बुद्धत्व को लेकर आएगी.
 
निमित्त बाहर है, लेकिन मूल कारण भीतर है. जब तक तुम भीतर सोए हो, प्रभु का स्मरण नहीं हुआ, भीतर गहरी नींद में पडे हो और राम की सुध नहीं आयी, अपनी सुध नहीं आयी--तब तक तुम कितना ही लडो क्रोध से मोह से माया से, जीत न सकोगे. एक तरफ से दबाओगे, दूसरी तरफ से उभर कर रोग खडा हो जाएगा. रोग दबाने से नहीं मिटते. रोगों का मूल कारण मिटाना होता है. तुम तो रोगों के ऊपरी लक्षणों से लड रहे हो. सारी दुनिया मग यही चल रहा है, लोग लक्षणों से लड रहे हैं..
 
लोग जाकर कसम ले लेते हैं. मंदिर में कि अब क्रोध न करेंगे. क्या तुम सोचते हो कसम लेना क्रोध को रोक पाएगी? काश इतना आसान होता! काश कसमों से बातें हल होतीं! लोग व्रत लेते हैं.-अणुव्रत, महाव्रत! काश व्रतों के लेने से जीवन रूपांतरित होता होता! व्रत टूटते हैं., और कुछ भी नहीं होता. और ध्यान रखना, लिए गए व्रत जब टूटते हैं. तो भयंकर हानि पहुंचाते हैं.. इसलिए म।लशपीं; तुमसे कहता हूं: व्रत तो कभी लेना ही मत. क्योंकि पही तो बात यह है: व्रत लेने से कभी कोई रूपांतरण नहीं होता. अगर तुम समझ ही गए हो कि क्रोध व्यर्थ है तो व्रत थोडे ही लेना पडेगा, बात खतम हो गई्. तुम समझ गए कि क्रोध व्यर्थ है.
 
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