हम सभी की जिंदगी शर्तों से बंधी होती है। जाने-अनजाने में यह कितनी ही शर्तों के अधीन गुजर-बसर करती है, अमूमन हमें खुद इसका अंदाजा नहीं होता। दरअसल, शर्तें हमारी जिंदगी को बांधने के साथ-साथ इसे सरल और सुखद बनाने में भी बराबर भूमिका अदा करती हैं। मसलन, अगर हम किसी इंसान को अपना करीबी मित्र मानते हैं तो ऐसा होने की शर्तें भी जरूर होती हैं। वह हमारा शुभचिंतक हो और हम दोनों एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते-समझते हों। जरूरी नहीं है कि ये शर्तें हमें कहीं किताबों में ही पढ़ने को मिलें या फिर शिक्षा के माध्यम से हम इन शर्तों को सीख पाएं। वास्तव में हमें इनकी समझ जीवन के अनुभव के जरिए होती है। एक व्यवस्थित सामाजिक संरचना के लिए इन्हें अमल में लाना आवश्यक है। इन्हीं के माध्यम से हमें अच्छे-बुरे की पहचान भी होती है।

एक ही सामाजिक परिवेश में मुख्तलिफ विचारों के लोग साथ-साथ रहते हैं। लेकिन ऐसा भी नहीं होता कि साथ-साथ रह रहे हरेक व्यक्ति के विचार और स्वभाव एकदम अलग ही हों। हमारे कुछ विचार और स्वभाव दूसरों से मिलते-जुलते भी लगते हैं। समानता की यही स्थिति हमारे बीच घनिष्ठता को जन्म देती है, यानी यह समानता घनिष्ठता की एक शर्त के रूप में काम करती है। यह हमें समाज में हमखयाल लोगों के करीब लाती है। पिछले दिनों प्रसिद्ध लेखक युवाल नोआ हरारी की पुस्तक ‘सेपियंस: ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ ह्यूमनकाइंड’ पढ़ रहा था। पुस्तक में पुरातन काल में मानव-समाज के चरणबद्ध तरीके से विकास के इतिहास का विस्तृत जिक्र है। मानव-समाज के विकास का एक महत्त्वपूर्ण आधार इसकी एकजुटता है। हमारे समाज में हम सभी में एकजुटता की भावना कब और क्यों आई सामान्य रूप से सोचने में शायद ही यह सवाल हमारे जेहन में आता है।

हम जानते हैं कि मानव को एक सामाजिक प्राणी कहा गया है। अतीत में इसके पीछे अवश्य ही ठोस कारण और परिस्थितियां रही होंगी। करीब सत्तर हजार साल पहले होमो सेपियंस के व्यवहार में बहुत ही विशेष तत्त्वों को शामिल किए जाने की बात किताब में आई है। इस दौरान बौद्धिक क्रांति की शुरुआत होती है। लगभग सत्तर हजार से तीस हजार साल पूर्व के बीच संप्रेषण के नए तरीके का आगाज हुआ। सोचने-समझने और वार्तालाप के नए दौर ने हमारे पूर्वजों की बौद्धिक क्षमताएं और बढ़ा दीं।

संप्रेषण की कला और भाषा के उदय ने मनुष्यों के बीच सामाजिक सहयोग को पहले से कहीं अधिक बेहतर बनाया। इससे आपस में जानकारियों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया सरल हुई। शायद सहयोग की इसी प्रक्रिया से मानव जाति के बचे रहने को एक मजबूत आधार मिला। बौद्धिक क्रांति के कारण आगे चल कर किंवदंतियों, मिथकों आदि के अस्तित्व पर भी संवाद की शुरुआत हुई। कल्पना और समान मान्यता के कारण मानव समाज में सामूहिकता का तत्त्व शामिल हुआ। आपसी समन्वय, भरोसा और कल्पना शक्ति के कारण मानव अब असंख्य सदस्यों का समूह बनाने में सक्षम हुआ। इस प्रकार समाज की संरचना हुई। सामूहिकता और एकजुटता की भावना के पीछे समान कल्पना, मान्यता और परिस्थितियां अपने-अपने स्तर पर अहम् स्थान रखती हैं।

जाहिर है, समान परिस्थितियों का सामना कर रहे लोगों का सामूहिक रूप से जुड़ पाना ज्यादा स्वाभाविक होता है। इन्हीं वजहों से पुरातन काल में मानव-समाज के सामने जो चुनौतियां रही होंगी, उनसे निपटने के लिए वे सामूहिक तौर पर एक साथ संघर्ष कर रहे होंगे। दूसरा पहलू यह भी है कि अगर लोगों की परिस्थितियां और प्राथमिकताएं अलग-अलग हों तो उन्हें एकजुट करना भी एक चुनौती है। यानी सामूहिकता के लिए परिस्थितियों और उद्देश्य का समान होना भी एक अनिवार्य शर्त है।

एक समाज में रहते हुए हम कितने लोगों से घनिष्ठता रख सकते हैं और कितने समय तक इसका अध्ययन भी अपने आप में एक विचित्र पहलू है। कई दफा हमाने सामने ऐसे भी पक्ष देखने को मिलते हैं कि हमारी जरूरतों के हिसाब से किसी से हमारी घनिष्ठता निर्धारित होती है। समय के साथ-साथ यह बढ़ती और कम भी हो जाती है। हमारा समाज इस तरह के कई ताने-बाने से बंधा हुआ है। इस तरह के अजीब मसले हमारे नजदीकी रिश्तों तक भी अपना प्रभाव छोड़ते हैं। एक सामान्य इंसान के लिए इन उतार-चढ़ाव से दूर रह पाना इतना आसान नहीं होता। कई बार निहित स्वार्थ के लिए भी लोगों का आपस में जुड़ना देखा जाता है। पर क्या यह जुड़ाव टिकाऊ होता है हम सभी अपने-अपने अनुभवों से यह अच्छी तरह समझ सकते हैं। स्थायी जुड़ाव की शर्त निजी स्वार्थ नहीं, बल्कि समान स्वभाव और विचार का होना है।

पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी करने के बाद दो अन्य साथियों के साथ मैं भी एक संस्थान में बतौर प्रशिक्षु जुड़ा। हम तीनों के लिए परिस्थितियां समान थीं। उनमें से एक के साथ मेरी घनिष्ठता बढ़ती गई। हम दोनों का एक ही समय पर दफ्तर आना-जाना, भोजन आदि होता था। कोई भी ऐसा वक्त नहीं आया कि हम दोनों में कभी भी किसी बात को लेकर मतभेद या मनमुटाव हुआ हो। हम दोनों एक दूसरे की अपेक्षा पर खरे उतरे। दरअसल, दो इंसानों के बीच जुड़ाव या घनिष्ठता की ऐसी स्थिति एक सुखद हमखयाली की अहम् शर्त होती है।