अट्ठम तप के प्रभाव से दुष्कर कार्य भी होते हैं सिद्ध
तपस्या के साथ जाप से सिद्धि की प्राप्ति होती है। बड़े से बड़े दुष्कर कार्य भी अट्ठम तप के प्रभाव से सिद्ध हो जाते हैं। शरीर में यदि शक्ति है, तो व्रत पच्चखाण नियम लेकर तपस्या करनी चाहिए।
राजगढ़ (नईदुनिया न्यूज)। तपस्या के साथ जाप से सिद्धि की प्राप्ति होती है। बड़े से बड़े दुष्कर कार्य भी अट्ठम तप के प्रभाव से सिद्ध हो जाते हैं। शरीर में यदि शक्ति है, तो व्रत पच्चखाण नियम लेकर तपस्या करनी चाहिए, क्योंकि तप के प्रभाव से हमारे निकाचित कर्म नष्ट हो जाते हैं। साधक तप के माध्यम से अपनी आत्मा को निर्मल बनाते हैं। साधना के क्षेत्र में कठिनाइयां साधक को आती हैं, लेकिन इससे डरने की जरूरत नहीं है। यदि कष्ट या परेशानी से नहीं डरे, तो सिद्धियां अवश्य प्राप्त होंगी।
यह बात 50 दिवसीय प्रवचन माला के तहत आचार्यश्री ऋषभचंद्र सूरीश्वरजी के शिष्य मुनिश्री पीयूषचंद्र विजयजी ने श्री राजेंद्र भवन में मंगलवार को कही। उन्होंने कहा श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु की उपासना में सभी आराधक अट्ठम तप की दूसरे पायदान की ओर अग्रसर हो चुके हैं। हमारा जीवन सादगीपूर्ण होना चाहिए। अट्ठम तप के अंतिम दिन साधक का शरीर देवारिष्ठ बन जाता है। साधक की रक्षा शासन के रक्षक देव करने लगते हैं। जब तक मुक्ति प्राप्त न हो, तब तक हमें प्रभु का सान्निाध्य मिलता रहे, ऐसे हमारे भाव रहना चाहिए।
द्वितीय मासिक पुण्यतिथि पर हुआ गुणानुवाद
आचार्यश्री ऋषभचंद्र सूरीश्वरजी के शिष्य मुनिराजश्री पीयूषचंद्रविजयजी, जिनचंद्रविजयजी एवं साध्वीश्री तत्वलोचनाश्रीजी, हर्षवर्द्धनाश्रीजी, वैराग्ययशाश्रीजी, तत्वश्रद्धाश्रीजी की निश्रा में आचार्यश्री की द्वितीय मासिक पुण्यतिथि पर गुणानुवाद सभा राजेंद्र भवन में हुई। साध्वीश्री तत्वश्रद्धाश्रीजी ने कहा कि गुणों को जीवन में ग्रहण करने के लिए गुणानुवाद किया जाता है। आचार्यश्री ने सम्यकदर्शन प्राप्त कर लिया था। मिथ्या दर्शन से व्यक्ति के जीवन में तनाव उत्पन्ना होता है। सम्यकदर्शन मोक्ष की गाड़ी का कंफर्म टिकट है। उन्होंने अपने जीवन में प्राणी मात्र के लिए उपकार के कार्य किए थे, उनके वचन सिद्ध होते थे। साध्वीश्री वैराग्ययशाश्रीजी ने भी अपने भावों को प्रकट करते हुए कहा कि आचार्यश्री हमेशा आत्म चिंतन करते थे और उसी चिंतन के बल पर हर व्यक्ति पर उपकार की भावना रखते थे। भले ही वे शरीर से अस्वस्थ थे, पर शरीर की चिंता नहीं करके हमेशा जिन शासन की सेवा में लगे रहते थे। हमें उनके गुणों को जीवन में ग्रहण करना चाहिए। कार्यक्रम में दिवी एवं दीती मोदी ने गीत की प्रस्तुति दी। श्री मोहनखेड़ा तीर्थ में आचार्यश्री की द्वितीय मासिक पुण्यतिथि निमित्त दोपहर में श्री राजेंद्रसूरि अष्टप्रकारी पूजा रखी गई एवं प्रसादी का वितरण किया गया।
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