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आजमगढ़

पर्यावरण असंतुलन ने बनाया हर मौसम कष्टकारी

लगातार गिर रहा जलस्तर परेशानी का सबब, मानवीय भूल का दुष्परिणाम भुगत रहे हैं लोग

आजमगढ़May 27, 2018 / 12:53 pm

sarveshwari Mishra

world environment day

पर्यावरण

आजमगढ़. बेमौसम गर्मी और बरसात, अषाढ़ में सूखा, मार्च में पानी के लिए त्राहि-त्राहि आखिर मौसम के इस कष्टकारी बदलाव के लिए जिम्मेदार कौन है। आने वाले दिनों में यह समस्या और भी गंभीर रूप धारण करेगी यह तय है फिर भी इस गंभीर समस्या के निराकरण के लिए कोई ठोस पहल नहीं की जा रही है। वैसे लोग प्रकृति को कोस रहे हैं लेकिन हकीकत आइने की तरफ साफ है। आज जो भी दुश्वारियां हैं उसके लिए जिम्मेदार मानवीय कारण हैं।

बता दें कि जिले में प्रदूषण का स्तर निरंतर बढ़ रहा है। प्रदूषण नियंत्रण के लिए सरकार द्वारा कुछ बिन्दुओं पर काम भी किया गया लेकिन प्रशासनिक अधिकारी योजनाओं का क्रियान्वयन करने में असफल रहे। मसलन अवैध खनन रोकने, मानक के विपरीत चल रहे ईंट-भट्ठों को बंद कराने का फैसला कागज तक सिमटा है। वायु मण्डल में कार्बन डाई आक्साइड गैस की अधिकता के चलते आक्सीन और कार्बन डाई आक्साइड का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। विशेषज्ञों की माने तो इसके चलते तापमान बढ़ रहा है, जिसका परिणाम है कि जलस्तर तेजी से नीचे भाग रहा है। तापमान बढऩे से लोग असमय गर्मी और जलस्तर नीचे खिसकने से पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। इसका सीधा असर कृषि पर पड़ रहा है। जल प्रदूषण की बात करें तो ज्यादातर कस्बों के नालों का पानी नदियों में बह रहा है। शहर में चार दशक गुजर जाने के बाद भी सीवर लाइन का कार्य पूर्ण नहीं हो सका है। पूरे शहर का गंदा पानी तमसा में बहाया जा रहा है। वर्ष 2005 में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तत्कालीन क्षेत्रीय अधिकारी राधेश्याम ने वायु प्रदूषण के चलते अम्लीय वर्षा की आशंका जताते हुए ईंट-भट्ठा संचालक, जेनरेटर संचालक, मोटरवाहन व अस्पतालों को नोटिस जारी किये थे। वैसे वर्तमान क्षेत्रीय अधिकारी आजमगढ़ में इस तरह का खतरा अभी नहीं मानते।

आज हालत यह है कि आम आदमी के लिए हर मौसम कष्टकारी हो गया है। वर्ष 2005 की बाढ़ को छोड़ दिया जाय तो पिछले छह वर्षों में अच्छी बरसात नहीं हुई है जिसके कारण खरीफ का उत्पादन लगातार गिरा है। इस बार भी बारिश कम होने से रबी के सीजन में किसान पूरी तरह निजी संसाधनों पर निर्भर है। ठंड कम पड़ने के कारण तिलहन और गेहूं का उत्पादन प्रभावित हो रहा है। जिले में पेयजल की समस्या अभी से उत्पन्न हो गयी है। देशी हैण्डपम्प झटके दे रहे हैं। ट्यूबवेल का भी पानी कम हो गया है। ऐसे में समय से बारिश न होने की स्थिति में खरीफ की फसल भी प्रभावित होगी। पर्यावरण असंतुलन का एक बड़ा कारण पेड़ों की अंधाधुंध कटाई भी है। सरकारी आंकड़े में यहां 110 हेक्टेअर वन है। इसके अलावा 6244 हेक्टेअर वृक्ष व झाडिय़ां भी उपलब्ध हैं। विभाग द्वारा प्रतिवर्ष पौधरोपण पर लाखों रुपये खर्च किया जा रहा है लेकिन देखरेख के अभाव में 70 प्रतिशत पौधे सूख जा रहे हैं, जिसके कारण वन का क्षेत्रफल नहीं बढ़ रहा है। डीएफओ कि 110 हेक्टेअर वन और प्रतिवर्ष हो रहे पौधरोपण को जोड़ दिया जाय तो जिले के कुल क्षेत्रफल का 4 प्रतिशत वन हो जायेगा। इनका मानना है कि इनकी जिम्मेदारी पौधरोपण करनी है। एक साल वे प्लांटेशन करते हैं और दो साल पौधे की देखरेख करने के बाद ग्राम सभा अथवा संबंधित संस्था को हैण्डओवर कर देते हैं। इसके बाद जिम्मेदारी संबंधित संस्था की होती है। अब सवाल यह है कि अगर पौधे नहीं बच रहे हैं तो जवाबदेही क्यों नहीं की जा रही है। मौसम के अनियमित बदलाव का सबसे अधिक खामियाजा किसान भुगत रहा है। असिलायी गांव के किसान रामजीत सिंह, निकासीपुर के रामनरायन, चकिया के कमला सिंह, सिकरौर के रामचंदर, कोटिला के रामसेवक राम का कहना है कि मौसम में लगातार हो रहे बदलाव ने खेती को मुश्किल बना दिया है। एक संसाधनों का अभाव दूसरे प्रकृति की मार हम पर भारी पड़ रही है। मौसम में बदलाव के लिए मानवीय कारण जिम्मेदार हैं लेकिन इसके प्रति जागरूकता अथवा समस्या के समाधान के लिए कोई ठोस पहल नहीं की जा रही है। ऐसे में आने वाला समय और भी दुखदायी हो सकता है।
मानवीय कारण जिम्मेदारः डॉ. आरके
आजमगढ़। कृषि विज्ञान केन्द्र कोटवां के सस्य वैज्ञानिक डॉ. आरके सिंह का कहना है कि मौसम के कष्टाकारी बदलाव का प्रमुख कारण पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ है। असंगठित औद्योगिकीकरण ने इस समस्या को और भी बढ़ाया है। साथ ही लगातार हो रही पेड़ों की कटाई, जल संरक्षण की व्यवस्था न होना भी इसकी बड़ी वजह है। यदि समय रहते इन समस्याओं का निराकरण नहीं किया गया तो पर्यावरण में आक्सीजन और कार्बन डाई आक्साइड का संतुलन और भी बिगड़ेगा जो मानव जीवन के लिए उचित नहीं होगा।

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