अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर युगादिदेव श्री आदिनाथ भगवान रहे[typography_font:14pt;” >विजापुरश्री महावीर जैन कोलोनी श्वे. मू. पू. ट्रस्ट। आयोजित प्रवचन में आचार्य महेन्द्रसागरसूरि ने कहा है कि इस अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर युगादिदेव श्री आदिनाथ भगवान रहे। श्री भरत चक्रवर्ती उन्हीं के पुत्र थे, जो कि इस अवसर्पिणी काल के पहले चक्रवर्ती थे। उनकी माता का नाम था सुमंगला। आदिनाथ भगवान ने भरत आदि पुत्रों को राजपाट सौंप कर दीक्षा ली थी। भरतराजा ने 60 हजार वर्ष में छह खंड जीते थे। श्री भरतराजा के पास, 14 रत्न 9 निधि, 16 हजार यक्ष, 32 हजार राजा, 64 हजार रानीयों के अधिपति थे। इसके अलावा 360 रसोइये, 84 लाख हाथी, 84 लाख रथ, 84 लाख घोडे, 96 करोड पैदल दल था। एक दिन आदिनाथ भगवान ने छ:रि पालित संघ और संघपति पर देशना दी थी। देशना सुनकर चक्रवर्ती भरत को छ:रि पालित संघ निकालकर संघपति पद प्राप्त करने की भावना हुई। तब श्री आदिनाथ प्रभु ने वासक्षेप डालकर चक्रवर्ती भरत को संघपति पद दिया। यह अवसर्पिणी काल का पहल छ:रि पालित संघ था। संघ जब शत्रुंजय पहुंचा तब चक्रवर्ती भरत ने गिरिराज पर सबसे पहला जिनालय बनाया और जिनालय में आदिनाथ प्रभु की रत्नमयी प्रतिमा की प्रतिष्ठा नाम गण घर के हाथों करवायी ।……………………………………..